Friday, September 09, 2005

20 हाइकु

छतरी हरी
खोले खड़े सागौन
तपती धूप ।


***

आया न कोई
गूँगे गीत बसन्त
झूठा था कागा ।


***
चाँदनी ओढ़ूँ
बिछाऊँ भी चाँदनी
चाह इतनी ।


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गंध टिकोरा
धूप लीपा आँगन
यादें महकीं ।


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खड़े पर्वत
लेटे कुबड़े ऊँट
हुए धुँधले ।


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सासू जी रात
सौगात चन्द्रमा की
ले गई छीन ।


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बुना घोंसला
जोड़-जोड़ तिनके
ले उड़ी हवा ।


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हवा पगली
बतियाना चाहती
मैं तो बौराई ।


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गरजे मेघा
धरती सहमती
छिपूँ मैं कहाँ ?


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कोलाज़ हुए
नदी, झील, पर्वत
दरख्त़, घास ।

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हुआ उदास
अकेला खड़ा गाछ
हवा न धूप ।


***
हिरनौटा रे,
भागता फिरे वक्त
हाथ न आये ।


***
फूलों की चौकी
बैठी है लाड़ो धूप
आँखें बिछाये ।


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झील में गिरा
सपना सिरफिरा
बोरला चाँद ।


***
खोजती हवा
कहाँ रख भूली रे,
गंध टोकरी ?


***

मेघ मल्हार
बरसते बदरा
झूलते पेड़ ।


***
आकर लौटा
गूँगा था मधुमास
गली उदास ।


***
मेघ कथायें
धरती के पृष्ठों पै
सजी अल्पना ।


***
टीले उदास
चिलमन धूल की
उठाये कौन ?


***

याद आती है
माँ की साड़ी की गंध
बाबा का कुर्ता ।
***

-डॉ० शैल रस्तोगी

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