Friday, September 09, 2005

परिचय










डॉ० शैल रस्तोगी

जन्म : 01-09-1927 मेरठ (उ०प्र०) में ।
शिक्षा : एम०ए० (आगरा विश्वविद्यालय पी-एच.डी. (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय)
शोध-निर्देशक : डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी (अब स्वर्गीय)
व्यवसाय : रघुनाथ गर्ल्स महाविद्यालय, मेरठ(उ.प्र. में ३४ वर्षों तक अध्यापन के पश्चात ससम्मान अवकाश प्राप्त । अब पूरी तन्मयता से स्वतंत्र लेखन।
विशेष : 21 सफल शोधार्थियों की शोध-निर्देशिका होने का सुखद अनुभव।
लेखन की विधाएं : मुख्यत: 'गीत एवं हाइकु'। यों मुक्तछंद-काव्य, दोहा, लघुकथा, कहानी, एकांकी, आलोचना इत्यादि प्राय: सभी विधाओं में भी पर्याप्त लेखन।
प्रकाशित कृतियां : एकांकी-संग्रह 'एक ज़िंदगी बनजारा' (उत्तर प्रदेश के राज्य पुरस्कार से सम्मानित), 'बिना रंगों के इंद्रधनुष' और 'सावधान सासूजी !'।
गीत संग्रह : 'पराग', 'जंग लगे दर्पण', 'मन हुए हैं कांच के' और 'धूप लिखे आखर'। 'चांदनी करती पालागन' )
हाइकु संग्रह : 'प्रतिबिंबित तुम', 'सन्नाटा खिंचे दिन', 'दु:ख तो पाहुन हैं', 'बांसुरी है तुम्हारी' और 'अक्षर हीरे मोती' ।

सम्पर्क सूत्र- एफ-227
शास्त्री नगर, मेरठ 25004
दूरभाष- 0121-2761083

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अन्य जालघरों पर प्रकाशित रचनाएँ

15 हाइकु

पहाड़ी गाँव
सिकुड़ा कछुआ रे,
तना अँधेरा।


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सोई है धूप
तलहटी जगाती
थकी लड़की ।


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बादामी धूप
सुरमई बरखा
नाचे रे ताल ।


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खड़ा है चाँद
लेकर लालटेन
सुझाये रास्ता ।


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साँझ डूबती
पश्चिमी पहाड़ी पै
बैठा संन्यासी ।


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फूली सरसों
हरद चढ़ी लाडो
लगी नज़र ।


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उदास हुए
छाज-चक्की-छलनी
कहाँ वे दिन ?


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लिखती धूप
फूल-फूल आखर
भागती नदी ।


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बहरी गली
बड़बोला अँधेरा
गूँगे मकान ।


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सूर्य बिछाता
धूप धोई जाजम
रोज़-रोज़ ही ।


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एक चिड़िया
पंख कटी उदास
मैं ही तो हूँ वो ।


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पीपल गाछ
फड़फड़ाते पात
सुने तो कोई ।


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जोगन शाम
हुआ जोगी सूरज
मन कबीर ।


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नदी कछार
हँसती सोना माटी
धूप के धान ।


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समेटो जाल
ओ रे ओ मछुआरे !
डूबा रे दिन ।
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-डॉ० शैल रस्तोगी

20 हाइकु

छतरी हरी
खोले खड़े सागौन
तपती धूप ।


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आया न कोई
गूँगे गीत बसन्त
झूठा था कागा ।


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चाँदनी ओढ़ूँ
बिछाऊँ भी चाँदनी
चाह इतनी ।


***
गंध टिकोरा
धूप लीपा आँगन
यादें महकीं ।


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खड़े पर्वत
लेटे कुबड़े ऊँट
हुए धुँधले ।


***
सासू जी रात
सौगात चन्द्रमा की
ले गई छीन ।


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बुना घोंसला
जोड़-जोड़ तिनके
ले उड़ी हवा ।


***
हवा पगली
बतियाना चाहती
मैं तो बौराई ।


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गरजे मेघा
धरती सहमती
छिपूँ मैं कहाँ ?


***
कोलाज़ हुए
नदी, झील, पर्वत
दरख्त़, घास ।

***
हुआ उदास
अकेला खड़ा गाछ
हवा न धूप ।


***
हिरनौटा रे,
भागता फिरे वक्त
हाथ न आये ।


***
फूलों की चौकी
बैठी है लाड़ो धूप
आँखें बिछाये ।


***
झील में गिरा
सपना सिरफिरा
बोरला चाँद ।


***
खोजती हवा
कहाँ रख भूली रे,
गंध टोकरी ?


***

मेघ मल्हार
बरसते बदरा
झूलते पेड़ ।


***
आकर लौटा
गूँगा था मधुमास
गली उदास ।


***
मेघ कथायें
धरती के पृष्ठों पै
सजी अल्पना ।


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टीले उदास
चिलमन धूल की
उठाये कौन ?


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याद आती है
माँ की साड़ी की गंध
बाबा का कुर्ता ।
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-डॉ० शैल रस्तोगी

6- हाइकु

आँखें हैं झील
किश्तियाँ, मछलियाँ
यादें ही यादें ।


***
छोटी गली में
खो गया है अपना
बड़ा सपना ।


***
वर्षा बौछार
भीगे घर आँगन
और मैं भी तो ।


***

बौराई मैना
बतियाते दरख्त़
मौसम चुप ।


***
कोमल बड़े
तुमसे जुड़े तार
रेशमी रिश्ते ।


***
कहा नदी ने
किनारे थे बहरे
हवा में बात ।
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-डॉ० शैल रस्तोगी

Saturday, August 20, 2005